सात समंदर कूद फांद के लंका नगरी आ गए
भजन लिरिक्ससात समंदर कूद फांद के,
लंकांका नगरी आ गए.
देखो संका नगरी आ गए.
ऐसा किया बवाल,
ऐसा किया बवाल,
देख लकावासी घबरा गए,
सात समुन्दर कूद फांद के.
लंका नगरी आ गए।।
तर्ज-सात समंदर पार में तेरे।
लंकापुर पहुंचे हनुमत जी,
कियािया प्रभु का ध्यान,
मातमात सिपा को खोजे पवनसुत,
लंका में अनजान,
असुरों संग बैठी.
असुरों संग बैठी मेरी माँ,
ये देख क्रोध में आ गए,
सात समुन्दर कूद फांद के,
लंका नगरी आ गए।
राम निशानी लिए पवनसुत,
पहुंचे मों के पास,
देख निशानी जनकनन्दिनी,
व्याकुल भई उदास,
हनुमत मेरे प्राण,
हनुमत मेरे प्राणनाथ को.
छोड़ कहाँ तुम आ गए.
सात समुन्दर कूद फांद के,
लंका नगरी आ गए।
भूख लगी ले आक्षा पवनसुत.
चले बगिया की ओर,
तोड़ तोड़ फल खाने लगे और,
फेंके चारों ओर,
देख तबाही,
देख तबाही बगिया की.
रावण के सैनिक आ गए.
सात समुन्दर कूद फांद के,
लंका नगरी आ गए।।
बनाके बंदी रावण सन्मुख,
खूब किपा अपमान,
सहन हुआ नहीं रावण सै.
लगवा दी पूंछ में आग,
क्रोधित बजरंगी,
क्रोधित बजरंगी लंका में,
आग लगाके आ गए.
सात समुन्दर कूद फांद के,
लेका नगरी आ गए।।
सात समंदर कूद फांद के, लंका नगरी आ गए. देखो लंका नगरी आ गए. ऐसा किया बवाल, ऐसा किया बवाल. देख लकावासी घबरा गए. सात समुन्दर कूद फांद के, लंका नगरी आ गए।
गापक / प्रेषक - मुकेश कुमार जी।
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